तू जब जब मुझसे है लड़ती तो आँखें रूठ जाती हैं, मेरी हाँ को भी न समझती तो आँखें रूठ जाती हैं, तेरी गलियों से आना जाना बारम्बार करती हैं, मगर जब तू नहीं दिखती तो आँखें रूठ जाती हैं।। Kumar Satendra
किताबों में छुपे फूल जब तुम्हारा नाम पूछेंगे लिखे जो खत तुझे देने, कल तुम्हारा धाम पूछेंगे मै दिल को अपने समझा लूँगा लेकिन, क्या कहूंगा जब मेरे सूखे लव जब लवों का कुछ इंतजाम पूछेंगे ~Kumar Satendra
हो कितनी काली रैन मगर वो मिहिर बन खिल आएगा अभी गुमनामी में है कल वो भी कुछ दिल पे छाएगा तजुर्बे जो जीवन से सीखे उनको भाव देकर के शब्द शब्द पन्ने पर लिख दे वो भी एक कवि बन जाएगा ~Kumar Satendra
मेरे होने का वादा करके मुझसे दूर जाता है, कभी जुल्फों की छांव कभी गम की धूप बरसाता है, जमीं तड़पाती है बादल को ऐसे वो तड़पाता है, नहीं मालूम वो ही शख्स क्यूँ इस दिल को भाता है
कि बनके ख्वाब आती है वो मेरे गाँव की लड़की मुझे कितना सताती है वो मेरे गाँव की लड़की कोई जब बात करता है जो मुझसे दिल लगाने की, तो कितना याद आती है वो मेरे गाँव की लड़की! कि जुड़कर टूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की तो मिलकर छूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की मै जब भी बात करता हूँ उसे मुझको भुलाने की तो अक्सर रूठ जाती है वो मेरे गाँव की लड़की! किसी से भी ना कहती है वो मेरे गाँव की लड़की तो बस चुप चाप रहती है वो मेरे गाँव की लड़की कभी उलझन कभी सुलझा कभी पानी कभी सूखा नदी बनकर के बहती है वो मेरे गाँव की लड़की! हर पल बरसता बादल है वो मेरे गाँव की लड़की मेरी आँखों का काजल है वो मेरे गाँव की लड़की खुद परी होके परियों का कहानी सुनती है अब भी कहूँ क्या कितनी पागल है वो मेरे गाँव की लड़की! मेरे दिल की मुहब्बत है वो मेरे गाँव की लड़की धड़कनों की इबादत है वो मेरे गाँव की लड़की मुहब्बत भी देख उसे उस पे जो खुद नाज करती है बुजुर्गों की नशीहत है वो मेरे गाँव की लड़की! ~Kumar Satendra
कि बनके ख्वाब आती है वो मेरे गाँव की लड़की मुझे कितना सताती है वो मेरे गाँव की लड़की कोई जब बात करता है जो मुझसे दिल लगाने की, तो कितना याद आती है वो मेरे गाँव की लड़की ~Kumar Satendra
कि जुड़कर टूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की तो मिलकर छूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की मै जब भी बात करता हूँ उसे मुझको भुलाने की तो अक्सर रूठ जाती है वो मेरे गाँव की लड़की ~Kumar Satendra
किसी से भी ना कहती है वो मेरे गाँव की लड़की तो बस चुप चाप रहती है वो मेरे गाँव की लड़की कभी उलझन कभी सुलझा कभी पानी कभी सूखा नदी बनकर के बहती है वो मेरे गाँव की लड़की! ~Kumar Satendra
हर पल बरसता बादल है वो मेरे गाँव की लड़की मेरी आँखों का काजल है वो मेरे गाँव की लड़की खुद परी होके परियों का कहानी सुनती है अब भी कहूँ क्या कितनी पागल है वो मेरे गाँव की लड़की! ~Kumar Satendra
मेरे दिल की मुहब्बत है वो मेरे गाँव की लड़की धड़कनों की इबादत है वो मेरे गाँव की लड़की मुहब्बत भी देख उसे उस पे जो खुद नाज करती है बुजुर्गों की नशीहत है वो मेरे गाँव की लड़की!
अराजक बनते जब खादी तो आँखें रूठ जाती हैं कहीं रूप गढ़े बरबादी तो आँखें रूठ जाती हैं सभी है झूठे शहरों में मगर न्यायालयों में भी जाए बढ़ झूठ की आँधी तो आँखें रूठ जाती हैं ~Kumar Satendra
कहानी गर पुरानी हों कहानी बन ही जायेगीं, जो किस्सा तुम सुनोगे मेरा आँखें भर ही आयेगीं, तेरी गजलें मेरी कविता कहीं मिल जाएँ गर जो तो तेरी गजलें भी कुछ कुछ मेरी ही कविता गायेगीं ~Kumar Satendra
गीत ग़ज़ल गुनगुनाता है तू जब भी पास होती है नहीं कुछ भी तो भाता है तू जब भी पास होती है मेरे बस में नहीं रहता चलाता अपनी मर्जी है मेरा दिल मचल ही जाता है तू जब भी पास होती है ~Kumar Satendra
कहीं गुम सा मै जाता हूँ तू जब भी पास होती है बाहर खुद से नहीं आता हूँ तू जब भी पास होती है मै क्या करने आया था और क्या कर धर रहा हूँ मै मै सब कुछ भूल जाता हूँ तू जब भी पास होती है ~Kumar Satendra
हजारों रोज गुज़रे हैं हजारों रोज गुज़रेंगे सिवा तेरे मेरे नगमे किसी से भी न सिमटेंगे कभी आँसू कभी हँसना कभी लिखना कभी पढ़ना जो तूने ना सम्हाले हम किसी से भी न सम्हलेंगे ~Kumar Satendra
कहानी गर अधूरी हो मुकम्मल हो नहीं सकती निराली हो किसी की छवि तो धूमिल हो नहीं सकती जो करता है मुहब्बत तू तो फिर उसकी इबादत कर जबरदस्ती की मुहब्बत कभी हाँसिल हो नहीं सकती ~Kumar Satendra
मै जब भी दूर जाता हूँ तो आँखें रूठ जाती हैं ख्वाबों में गाँव आता हूँ तो आँखें रूठ जाती हैं मैने रुतबा पैसा नाम बहुत कमाया मगर खुद को स्वयं से दूर पाता हूँ तो आँखें रूठ जाती हैं ~Kumar Satendra
बताऊँ क्या कि मेरे यार का किरदार कैसा है नहीं वादा निभाता है किसी सरकार जैसा है सुना है मैने यारों से कि सब है एक जैसी तो क्या तेरा यार भी यारा मेरे ही यार जैसा है ~ Kumar Satendra
नज़र जब भी तू आती है नज़र से चूम लेता हूँ, तेरी चाहत का पीके जाम अक्सर झूम लेता हूँ मुझे रातों में यारा जब मेरी आँखें सताती है तो मै चुपचाप तेरे नाम के अक्षर चूम लेता हूँ ~Kumar Satendra
ज़रा सी देर होने पर वो मुझसे रूठ जाता है किसी भी बात को ना कर दूँ पूरा टूट जाता है जरा हालात को मेरे भी तुम समझा करो यारा छोटी-छोटी सी बातों पर नहीं रिश्ता छूट जाता है ~Kumar Satendra
मै महफ़िल में ज़माने की दीवाना हो नहीं पाया वहाँ तुम हँस नहीं पाई यहाँ मै रो नहीं पाया कईं दिन हो गये लेकिन कहानी एक वो ही है वहाँ तुम सो नहीं पाई यहाँ मै सो नहीं पाया ~ Kumar Satendra
जो उसके साथ गुजरा है वही किस्सा सुनाता हूँ तभी तो गीत ग़ज़लों में उसे ही गुनगुनाता हूँ मेरे नगमे ज़माने की ज़बाँ पर इसलिए भी है उसी को रोज लिखता हूँ उसी को रोज गाता हूँ ~Kumar Satendra
मैनें अपनो को काँटे बोते देखा है जबकि गैरों को अपना होते देखा है तुम सभी दरियायों की बात करते हो मैनें समन्दर को भी सोते देखा है रकीब कह रहा मुझसे बेवफा है वो मैनें उसको रातों में रोते देखा है लोग कह रहे हैं उसकी आँखों का काजल मैनें तो ख्वाबों को भी खोते देखा है ~ Kumar Satendra
तुमसे करूँ मै इक निवेदन तुम मेरे गीत सजा देना जिन अधरों से चूमा मुझको तुम उनसे इनको गा दो ना तुम्हारे लव छुयें इनको तो इनकी अमर कहानी होगी गीतों में अनुराग मिलेगा नफ़रत पानी पानी होगी हर लव इनको ही गायें तुम ऐसे मधुर बना दो ना जिन अधरों को सुनने से ही लाखों भँवरे दिल हार गए मेरे आवारा जीवन को जो अधर पल में सँवार गए उन अधरों से ही तुम इनमें अब चारों चाँद लगा दो ना ~ Kumar Satendra
ईश्वर अल्लाह कभी रब में बाँट दिया अब कोरोना भी मज़हब में बाँट दिया ऊँचे कद पहुँच अब तूने नीचता दिखाई अंदर का सब ज़हर हम सब में बाँट दिया दाद देनी पड़ेगी हैवानियत की तेरी मतलब में कमाया मतलब में बाँट दिया तारीफ़ क्यूँ करूँ उस खुदा की खुदाई की पश्चिम से लिया "औ" पूरब में बाँट दिया ~Kumar Satendra
जहाँ सबकी निगाहें थी वही मेरा निशाना था मोहब्बत करते हैं तुमसे मुझे भी ये बताना था ज़रा भी पास आती थी ज़ुबाँ हकलाने लगती थी दिलों में इश्क़ रहता था किताबों का ज़माना था ~Kumar Satendra ✍