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Showing posts from April, 2020

तू जब जब मुझसे है लड़ती

तू जब जब मुझसे है लड़ती तो आँखें रूठ जाती हैं, मेरी हाँ को भी न समझती तो आँखें रूठ जाती हैं, तेरी गलियों से आना जाना बारम्बार करती हैं, मगर जब तू नहीं दिखती तो आँखें रूठ जाती हैं।। Kumar Satendra

तुम्हारा नाम पूछेंगे

किताबों में छुपे फूल जब तुम्हारा नाम पूछेंगे लिखे जो खत तुझे देने, कल तुम्हारा धाम पूछेंगे मै दिल को अपने समझा लूँगा लेकिन, क्या कहूंगा जब मेरे सूखे लव जब लवों का कुछ इंतजाम पूछेंगे ~Kumar Satendra

प्यार हो जाऊँ

तू जो कहे सौ से हजार हो जाऊँ पतझड़ बनूँ या फिर बहार हो जाऊँ क्या इरादा है बता जरा या फिर मै तेरी साँसों मे घुलूँ प्यार हो जाऊँ ~Kumar Satendra

कवि बन जाएगा

हो कितनी काली रैन मगर वो मिहिर बन खिल आएगा अभी गुमनामी में है कल वो भी कुछ दिल पे छाएगा तजुर्बे जो जीवन से सीखे उनको भाव देकर के शब्द शब्द पन्ने पर लिख दे वो भी एक कवि बन जाएगा ~Kumar Satendra

मुझसे दूर जाता है

मेरे होने का वादा करके मुझसे दूर जाता है, कभी जुल्फों की छांव कभी गम की धूप बरसाता है, जमीं तड़पाती है बादल को ऐसे वो तड़पाता है, नहीं मालूम वो ही शख्स क्यूँ इस दिल को भाता है

वो मेरे गाँव की लड़की

कि बनके ख्वाब आती है वो मेरे गाँव की लड़की मुझे कितना सताती है वो मेरे गाँव की लड़की कोई जब बात करता है जो मुझसे दिल लगाने की, तो कितना याद आती है वो मेरे गाँव की लड़की! कि जुड़कर टूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की तो मिलकर छूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की मै जब भी बात करता हूँ उसे मुझको भुलाने की तो अक्सर रूठ जाती है वो मेरे गाँव की लड़की! किसी से भी ना कहती है वो मेरे गाँव की लड़की तो बस चुप चाप रहती है वो मेरे गाँव की लड़की कभी उलझन कभी सुलझा कभी पानी कभी सूखा नदी बनकर के बहती है वो मेरे गाँव की लड़की! हर पल बरसता बादल है वो मेरे गाँव की लड़की मेरी आँखों का काजल है वो मेरे गाँव की लड़की खुद परी होके परियों का कहानी सुनती है अब भी कहूँ क्या कितनी पागल है वो मेरे गाँव की लड़की! मेरे दिल की मुहब्बत है वो मेरे गाँव की लड़की धड़कनों की इबादत है वो मेरे गाँव की लड़की मुहब्बत भी देख उसे उस पे जो खुद नाज करती है बुजुर्गों की नशीहत है वो मेरे गाँव की लड़की! ~Kumar Satendra

कि बनके ख्वाब आती है

कि बनके ख्वाब आती है वो मेरे गाँव की लड़की मुझे कितना सताती है वो मेरे गाँव की लड़की कोई जब बात करता है जो मुझसे दिल लगाने की, तो कितना याद आती है वो मेरे गाँव की लड़की ~Kumar Satendra

कि जुड़कर टूट जाती है

कि जुड़कर टूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की तो मिलकर छूट जाती है वो मेरे गाँव की लड़की मै जब भी बात करता हूँ उसे मुझको भुलाने की तो अक्सर रूठ जाती है वो मेरे गाँव की लड़की ~Kumar Satendra

किसी से भी ना कहती है

किसी से भी ना कहती है वो मेरे गाँव की लड़की तो बस चुप चाप रहती है वो मेरे गाँव की लड़की कभी उलझन कभी सुलझा कभी पानी कभी सूखा नदी बनकर के बहती है वो मेरे गाँव की लड़की! ~Kumar Satendra

हर पल बरसता बादल है

हर पल बरसता बादल है वो मेरे गाँव की लड़की मेरी आँखों का काजल है वो मेरे गाँव की लड़की खुद परी होके परियों का कहानी सुनती है अब भी कहूँ क्या कितनी पागल है वो मेरे गाँव की लड़की! ~Kumar Satendra

मेरे दिल की मुहब्बत है

मेरे दिल की मुहब्बत है वो मेरे गाँव की लड़की धड़कनों की इबादत है वो मेरे गाँव की लड़की मुहब्बत भी देख उसे उस पे जो खुद नाज करती है बुजुर्गों की नशीहत है वो मेरे गाँव की लड़की!

अराजक बनते जब खादी

अराजक बनते जब खादी तो आँखें रूठ जाती हैं कहीं रूप गढ़े बरबादी तो आँखें रूठ जाती हैं सभी है झूठे शहरों में मगर न्यायालयों में भी जाए बढ़ झूठ की आँधी तो आँखें रूठ जाती हैं ~Kumar Satendra

कहानी गर पुरानी हों

कहानी गर पुरानी हों कहानी बन ही जायेगीं, जो किस्सा तुम सुनोगे मेरा आँखें भर ही आयेगीं, तेरी गजलें मेरी कविता कहीं मिल जाएँ गर जो तो तेरी गजलें भी कुछ कुछ मेरी ही कविता गायेगीं ~Kumar Satendra

गीत ग़ज़ल गुनगुनाता है

गीत ग़ज़ल गुनगुनाता है तू जब भी पास होती है नहीं कुछ भी तो भाता है तू जब भी पास होती है मेरे बस में नहीं रहता चलाता अपनी मर्जी है मेरा दिल मचल ही जाता है तू जब भी पास होती है    ~Kumar Satendra

तू जब भी पास होती है

कहीं गुम सा मै जाता हूँ तू जब भी पास होती है बाहर खुद से नहीं आता हूँ तू जब भी पास होती है मै क्या करने आया था और क्या कर धर रहा हूँ मै मै सब कुछ भूल जाता हूँ तू जब भी पास होती है     ~Kumar Satendra

हजारों रोज गुज़रे हैं

हजारों रोज गुज़रे हैं हजारों रोज गुज़रेंगे सिवा तेरे मेरे नगमे किसी से भी न सिमटेंगे कभी आँसू कभी हँसना कभी लिखना कभी पढ़ना जो तूने ना सम्हाले हम किसी से भी न सम्हलेंगे    ~Kumar Satendra

कहानी गर अधूरी हो

कहानी गर अधूरी हो मुकम्मल हो नहीं सकती निराली हो किसी की छवि तो धूमिल हो नहीं सकती जो करता है मुहब्बत तू तो फिर उसकी इबादत कर जबरदस्ती की मुहब्बत कभी हाँसिल हो नहीं सकती    ~Kumar Satendra

मै जब भी दूर जाता हूँ

मै जब भी दूर जाता हूँ तो आँखें रूठ जाती हैं ख्वाबों में गाँव आता हूँ तो आँखें रूठ जाती हैं मैने रुतबा पैसा नाम बहुत कमाया मगर खुद को स्वयं से दूर पाता हूँ तो आँखें रूठ जाती हैं    ~Kumar Satendra

बताऊँ क्या कि मेरे यार का किरदार

बताऊँ क्या कि मेरे यार का किरदार कैसा है नहीं वादा निभाता है किसी सरकार जैसा है सुना है मैने यारों से कि सब है एक जैसी तो क्या तेरा यार भी यारा मेरे ही यार जैसा है ~ Kumar Satendra

नज़र जब भी तू आती है

नज़र जब भी तू आती है नज़र से चूम लेता हूँ, तेरी चाहत का पीके जाम अक्सर झूम लेता हूँ मुझे रातों में यारा जब मेरी आँखें सताती है तो मै चुपचाप तेरे नाम के अक्षर चूम लेता हूँ ~Kumar Satendra

ज़रा सी देर होने पर

ज़रा सी देर होने पर वो मुझसे रूठ जाता है किसी भी बात को ना कर दूँ पूरा टूट जाता है जरा हालात को मेरे भी तुम समझा करो यारा छोटी-छोटी सी बातों पर नहीं रिश्ता छूट जाता है   ~Kumar Satendra

सो नहीं पाया

मै महफ़िल में ज़माने की दीवाना हो नहीं पाया वहाँ तुम हँस नहीं पाई यहाँ मै रो नहीं पाया कईं दिन हो गये लेकिन कहानी एक वो ही है वहाँ तुम सो नहीं पाई यहाँ मै सो नहीं पाया ~ Kumar Satendra

जो उसके साथ गुज़रा है

जो उसके साथ गुजरा है वही किस्सा सुनाता हूँ तभी तो गीत ग़ज़लों में उसे ही गुनगुनाता हूँ मेरे नगमे ज़माने की ज़बाँ पर इसलिए भी है उसी को रोज लिखता हूँ उसी को रोज गाता हूँ     ~Kumar Satendra 

मैने अपनों को काँटे बोते देखा है

मैनें अपनो को काँटे बोते देखा है जबकि गैरों को अपना होते देखा है तुम सभी दरियायों की बात करते हो मैनें समन्दर को भी सोते देखा है रकीब कह रहा मुझसे बेवफा है वो मैनें उसको रातों में रोते देखा है लोग कह रहे हैं उसकी आँखों का काजल मैनें तो ख्वाबों को भी खोते देखा है ~ Kumar Satendra

तुमसे करूँ मै इक निवेदन

तुमसे करूँ मै इक निवेदन तुम मेरे गीत सजा देना जिन अधरों से चूमा मुझको तुम उनसे इनको गा दो ना तुम्हारे लव छुयें इनको तो इनकी अमर कहानी होगी गीतों में अनुराग मिलेगा नफ़रत पानी पानी होगी हर लव इनको ही गायें तुम ऐसे मधुर बना दो ना जिन अधरों को सुनने से ही लाखों भँवरे दिल हार गए मेरे आवारा जीवन को जो अधर पल में सँवार गए उन अधरों से ही तुम इनमें अब चारों चाँद लगा दो ना ~ Kumar Satendra 

बाँट दिया

ईश्वर अल्लाह कभी रब में बाँट दिया अब कोरोना भी मज़हब में बाँट दिया ऊँचे कद पहुँच अब तूने नीचता दिखाई अंदर का सब ज़हर हम सब में बाँट दिया दाद देनी पड़ेगी हैवानियत की तेरी मतलब में कमाया मतलब में बाँट दिया तारीफ़ क्यूँ करूँ उस खुदा की खुदाई की पश्चिम से लिया "औ" पूरब में बाँट दिया ~Kumar Satendra 

किताबों का ज़माना था

जहाँ सबकी निगाहें थी वही मेरा निशाना था मोहब्बत करते हैं तुमसे मुझे भी ये बताना था ज़रा भी पास आती थी ज़ुबाँ हकलाने लगती थी दिलों में इश्क़ रहता था किताबों का ज़माना था ~Kumar Satendra ✍